Tuesday, April 24, 2007

अपने से अलग एक दुनिया !!!

अपने आप में ही जीनेवाले हम लोग है,हम हर बार अपने आप को और शायद सभी को ये ही जताते है कि हम कितने अच्छे है ,सब का ख़्याल रखते है, सब के बारे में सोचते है ,खुद कि उलझनों के बावजूद भी ,देखो, हम कितना दूसरो के लिए जीते है !!!! क्या सच मुच हम ऐसा करते है कभी ?पूछकर देखिए अपने आप से ,आप का जवाब क्या है !!! सच कहे तो रोज मर्राह कि जिंदगी और भागदौड़ में हम अपने आप को याद नही रख पाते है तो दूसरो को क्या याद रखेंगें?? हम भूल जाते है कि हम से अलग ,हम से परे एक बेहद खुबसुरत दुनिया पलती है ,एक और दुनिया बसती है , जीती है \ हमारी ही तरह किसी और कि साँसे चलती है,धड़कने गूंजती है \
इस दुनिया मे बसने वाले हम सब कही ना कही अपने से लोगो कि तलाश मे होते है , प्यार कि ,ख़ुशी कि तलाश में होते है और इस तलाश में ये ही भूल जाते है कि जिस चीज कि खोज में,उसके इंतज़ार में हम आंखें बिछाए बैठे है वो हमारे ही पास है ,शायद दूसरो मे बाटों तो हमे भी मिल जाये \ हाँ, ख़ुशी और प्यार बाट ने कि चीज़ है ,अगर आप अपने लिए चाहते हो तो बाटों इन्हें ,या कहे लुटाओ इन्हें \\ इस जहा मे माँग ने वाले बहोत है, देनेवाला कोई नही \ दर्द देनेवाले बहोत है, दर्द बाटने वाला कोई नही \ तो क्यो ना हम अपने आप के लिए कोई मुकम्मिल जगह बनाए-क्यो ना दूसरो के दुःख दर्द बाटे , क्यो ना आस बंधाये \\ क्यो ना हम अपने से अलग पलने वाली दुनिया को अपना बनाए,क्यो ना हम उस कि साँसों में अपने गीत सजाये\\ क्यो अलग रहे हम, क्यो ना सब को अपना बनाए\\ इस दुनिया जहा मीत ना मिलते वह हम अपनी प्रीत लुटाये \\ चलो, इस दुनिया को अपना बनाए \\

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