Thursday, April 19, 2007

मेरी कविता

जीवन कि परिभाषा क्या है,
है जीने कि अभिलाषा क्या,
कभी ना रुकने वाले समय का,
हर पल है समझाता क्या? १

कौन से सुन रही मैं स्पंदन,
क्या जाग रहा अंतर्मन,
कौन से उत्तर धुंध रही मैं,
कीन प्रश्नों में घिरा है जीवन? २

आज अचानक,
महसूस हुआ जो,
क्या है ये अधूरापन? ३

वक़्त ने भी बदली है करवट,
विचारों कि बदली है गति,
अपने आप कि खोज कर रही,
भीड़ में मैं अकेलीसी ४

कोई ना जानता,कोई ना सुनता,
मेरे मन के स्पंदन को,
मैं ही अकेली देख रही हूँ,
मेरे जग-नवचेतन को !!!! ५

-----गौरी कमलाकर शेवतेकर.








कुछ रिश्ते |

जो रिश्तें दिलों को छू जाते है, उन रिश्तों को हाथों से छूने कि जरूरत नही \ होती बहुत खुबसुरती भर देते है कुछ लोग हमारी जिंदगी में-इतनी कि नजरे भी दुनिया को खुबसुरत महसूस करती है \इतनी कि पहले बदसूरत लगनेवाली दुनिया में हर तरफ खुबसुरती ,अच्छाई और रौशनी नजर आती है \ दिल को सुकून सा महसूस होता है \ क्या नाम होता है इन रिश्तों का,क्या नाम होता है उन लोगो का? होता भी है हर बार ? उनका नाम,वजूद या उस रिश्ते का नाम, ये जान ना जरूरी नही होता \उन रिश्तों को,उन लोगों को महसूस करना जरूरी है \ हर जिंदगी के लिए ऐसा एक रिश्ता,या कहिये ,रिश्ते जरूरी है \
----गौरी कमलाकर शेवतेकर.