Thursday, April 19, 2007

मेरी कविता

जीवन कि परिभाषा क्या है,
है जीने कि अभिलाषा क्या,
कभी ना रुकने वाले समय का,
हर पल है समझाता क्या? १

कौन से सुन रही मैं स्पंदन,
क्या जाग रहा अंतर्मन,
कौन से उत्तर धुंध रही मैं,
कीन प्रश्नों में घिरा है जीवन? २

आज अचानक,
महसूस हुआ जो,
क्या है ये अधूरापन? ३

वक़्त ने भी बदली है करवट,
विचारों कि बदली है गति,
अपने आप कि खोज कर रही,
भीड़ में मैं अकेलीसी ४

कोई ना जानता,कोई ना सुनता,
मेरे मन के स्पंदन को,
मैं ही अकेली देख रही हूँ,
मेरे जग-नवचेतन को !!!! ५

-----गौरी कमलाकर शेवतेकर.








1 comment:

Kavs said...

Hi Gauri!

Chhan lihiles ga tu. Ani vishesh mhanje, man mokale lihites. :)

Pan regularly lihit ja. Btw, tu olakhles na me kon ahe te?