जीवन कि परिभाषा क्या है,
है जीने कि अभिलाषा क्या,
कभी ना रुकने वाले समय का,
हर पल है समझाता क्या? १
कौन से सुन रही मैं स्पंदन,
क्या जाग रहा अंतर्मन,
कौन से उत्तर धुंध रही मैं,
कीन प्रश्नों में घिरा है जीवन? २
आज अचानक,
महसूस हुआ जो,
क्या है ये अधूरापन? ३
वक़्त ने भी बदली है करवट,
विचारों कि बदली है गति,
अपने आप कि खोज कर रही,
भीड़ में मैं अकेलीसी ४
कोई ना जानता,कोई ना सुनता,
मेरे मन के स्पंदन को,
मैं ही अकेली देख रही हूँ,
मेरे जग-नवचेतन को !!!! ५
-----गौरी कमलाकर शेवतेकर.
1 comment:
Hi Gauri!
Chhan lihiles ga tu. Ani vishesh mhanje, man mokale lihites. :)
Pan regularly lihit ja. Btw, tu olakhles na me kon ahe te?
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