Thursday, June 14, 2007

सलोना सावन //

एक गर्म सी दोपहर थी आज -पसीने से हालत खराब हो रही थी -हवा भी गर्म ही थी और अचानक ........जोर कि हवाये बहने लगी - रस्तो पर जमी धुल झट से हटाने लगी, फूल पत्तो के साथ साथ प्लास्टिक कि थैलियों को भी पर लग गए और आस्मान मे धुल, कपडे ,फूल, पत्ते, प्लास्टिक कि थैलिया सब का जमघट लग गया -गर्म सी हवाओ ने अपना अंदाज़ बदला , और ठंडे झोको मे तफदिल हो गयी , अभी तक रूक रूक के चलने वाली ट्राफिक भी जोर से भागने लगी, बारिश कि पहली झलक पाने को जिन्दगी तरसने लगी //
वाह, क्या नजारा था, नीले आसमा मे सावरे बादल छा गए और हर एक दिल मुस्कुरा उठा // बादलो के साथ साथ आसमा मे पंछी भी तैरने लगे, तितली से लेकर चिडिया तक झूम कर ऊंची उड़ाने भरने लगे// गुल मोहर कि खुबसुरत लाल पंकुडिया गोल गोल घूमती हुई जमीन को चूमने लगी ,और लाल रंग कि मखमली बिछायत जमीन पर सजने लगी // कोयल ने भी तान सुनाई और बारिश कि पहली बूँद धरती पर आयी//
वो बूँद तन को छूकर मन मे जा बसी// हर उदासी मिट गयी , बहारो के साथ साथ ख़ुशी आ गयी// बिजली ने भी खूब शोर मचाया , कारे बादलो के हर सू अंधेरो मे, गहरा उजाला छाया// क्या बताऊ ,कितना खुश गवार मौसम था, बूंदो के साथ उठती हर सरसराहट के साथ ख़ुशी के नयी लहेर दौड़ती थी, मानो बारिश न्योता देकर बस मुझे पुकारती थी// रस्तो के आईने बन गए, नन्ही नन्ही कलियों से फूल खिल गए//
देखते ही देखते सारा समां बदल गया, तन और मन कि तपन बुझाने सलोना सावन आ गया // सलोना सावन आ गया///

5 comments:

Sanjeet Tripathi said...

सुंदर!!

आज पहली बार आपका चिट्ठा देखा, शुभकामनाओं के साथ स्वागत है आपका हिंदी चिट्ठाजगत में

Gaurav Pratap said...

Hi, I am gaurav, you had asked about archives and more stuffs.....plz send the query in a mail.

Divine India said...

बहुत उम्दा रचना है…।

उन्मुक्त said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वसगत है।

Anonymous said...

Really great!!!!!!!
I had very good feeling while reading this blog.
The thing i missed the most in this article was the Mridgandh ( Bahot dino baad hone wali barish ki wajah se jo gandh ata hain uska warnan isme nahi tha).
Baaki jaise maine kaha great!!!!!!