Saturday, January 24, 2009

किसी और की उमदा रचनाये...

नमस्कार । आज आप सब के सामने मेरी कॉलेज के ज़माने की एक सहेली की कुछ उर्दू रचनाये रखने जा रही हूँ। मुझे ये कविताये बड़ी प्यारी है । नाम लेकर उसे रुसवा ना करने का वादा कल भी था, आज भी कायम है , इसीलिए नाम नही लिख रही...उसने जमा की हुई खुबसूरत कविताओ में से यह कुछ आप सब के लिए...उम्मीद है आप को भी यह पसंद आएँगी। शीर्षक नही है, क्रमांक दिये है ।
१) ए आंसू,
न आया कर उनकी आँखों में यूँ,
बस, इतनीसी तुझ से गुजारिश है ।
इक नूर ही काफी है उनके चेहरे से झलकने के लिए,
फिर भी झलकने की तेरी क्यों ख्वाहिश है ?
उन खुबसूरत आँखों में रहने की तेरी बेकरारी-
मुझ से बेहतर भला कौन समझ सकता है?
मगर उन आँखों में, बस मैं, और मैं ही रहूँ, ये मेरी बेकरारी,
तुझ से बेहतर भला कौन समझ सकता है ?
चल, करते है इक छोटासा समझोता ,
देता हूँ मैं तुझे अपनी आंखों में आने का न्यौता,
माना उस खूबसूरती का किश्त भी इन आंखों में नही ।
मगर इन में उन्ही का चेहरा बसता है,
क्या ये तेरे लिए काफी नही ...................................................................

२) मेरे हमसफ़र , तुझे क्या ख़बर,
वो जो इक रिश्ता -ऐ-दर्द था-
मेरे नाम का, तेरे नाम से,
तेरी सुबह का, मेरी शाम से,
सरे-रहगुजर है पड़ा हुआ, वही ख्वाब-ऐ-जा ।
मेरे हमसफ़र, तुझे क्या ख़बर,
बस, इक मोड़ के फर्क से -
तेरे हाथ से मेरे हाथ तक-
वो जो हाथ भर का था फासला,
कई मौसमों में बदल गया।
उसे नापते, उसे काटते,
मेरा सारा वक्त गुजर गया..........................................................................

३) जिंदगी की राहों में,
चार सू अँधेरा है ।
मन की सुनी वादी में,
खामोशी का डेरा है ।
जितने ख्वाब रोशन थे,
शर्मगी निगाहों में,
जितने पंछी उड़ते थे- भीगती फिजाओ में,
खो गए हवाओं में ।
आँधियों की राहो में ॥
क्या हूँ का आलम है तो फिजा पे तरी है,
हर किसी के चेहरे पर इक सोगवारी है।
तुम को अपना कहने की ये सजा हमारी है ।
हाँ, मगर ये ख्वाहेश है, फिर से ये जहाँ बदले,
मेरा महेरुबा बदले ।
हाँ, अगर तू चाहे-ले चले उधर मुझे,
दो कदम के रस्ते पर इक नया सवेरा है ।
इक बार फिर से कह दे , तू अभी भी मेरा है ...............................................

शब्दों के अर्थ -
हूँ- सन्नाटा
सोगवारी-दुःख


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