Wednesday, April 25, 2007

What does it take to enjoy and be happy ???

It was just another hot afternoon in summer,temperature above 40 degree celcius each day !!! so,naturally,to cool down and to make everyone chill at home,i went to buy icecream today and what i saw there was just fun !!!! A group of ladies,around 15-20 in number, most of them in their mid 40's, were there to have ice-cream and to my surprise, these ladies were freaking out,literally !!! In the middle of ice-cream shop,these ladies were laughing full voice,shouting,playing pranks on each other,were commenting and even a bit of ridicule to add to their enjoyment !!!! Utter chaos !!!! Even the shopkeeper and owner were stunned to see those ladies !!!! They were enjoying just like any one in his/her late teens would do,really, doing all the things as we all do when we are with our friends !!! Everyone seemed very very happy and though i was not the part of the group,i enjoyed just being there !!!! For those moments, the bearing of "age" and "social behaviour" ,was not there,what was there -was sheer and boundless enjoyment !!!!
That time,i thought ,it's upto our will -how much we enjoy ,how much we embrace a moment and make the fullest of it to be happy.We regret we lost our childhood,our teens and all fun ,all leisure,all laughter and yes,the long happy hours spent with friends too... But these women at their fourtees,each with woes and worries at home ,may be at heart,still enjoying those small,little cheers of life reminded me-age,work ,worries cast no obstacles if we really wish to enjoy......Many a times ,it does not require anyone else when we start enjoying ourselves and the circumstances....It's really us- the creator of happy times and memories as well.... It does not take anything more than our wish to create cheerful moments for ourselves and may we involve others in being happy too !!!!! We must not wait for someone else or a particular situation to make us happy or to enjoy but must give ourselves that freedom to create such smiling moments out of any situation that comes across us!!!! Bestow laughters on ourselves,we deserve them !!!!!!!

Tuesday, April 24, 2007

अपने से अलग एक दुनिया !!!

अपने आप में ही जीनेवाले हम लोग है,हम हर बार अपने आप को और शायद सभी को ये ही जताते है कि हम कितने अच्छे है ,सब का ख़्याल रखते है, सब के बारे में सोचते है ,खुद कि उलझनों के बावजूद भी ,देखो, हम कितना दूसरो के लिए जीते है !!!! क्या सच मुच हम ऐसा करते है कभी ?पूछकर देखिए अपने आप से ,आप का जवाब क्या है !!! सच कहे तो रोज मर्राह कि जिंदगी और भागदौड़ में हम अपने आप को याद नही रख पाते है तो दूसरो को क्या याद रखेंगें?? हम भूल जाते है कि हम से अलग ,हम से परे एक बेहद खुबसुरत दुनिया पलती है ,एक और दुनिया बसती है , जीती है \ हमारी ही तरह किसी और कि साँसे चलती है,धड़कने गूंजती है \
इस दुनिया मे बसने वाले हम सब कही ना कही अपने से लोगो कि तलाश मे होते है , प्यार कि ,ख़ुशी कि तलाश में होते है और इस तलाश में ये ही भूल जाते है कि जिस चीज कि खोज में,उसके इंतज़ार में हम आंखें बिछाए बैठे है वो हमारे ही पास है ,शायद दूसरो मे बाटों तो हमे भी मिल जाये \ हाँ, ख़ुशी और प्यार बाट ने कि चीज़ है ,अगर आप अपने लिए चाहते हो तो बाटों इन्हें ,या कहे लुटाओ इन्हें \\ इस जहा मे माँग ने वाले बहोत है, देनेवाला कोई नही \ दर्द देनेवाले बहोत है, दर्द बाटने वाला कोई नही \ तो क्यो ना हम अपने आप के लिए कोई मुकम्मिल जगह बनाए-क्यो ना दूसरो के दुःख दर्द बाटे , क्यो ना आस बंधाये \\ क्यो ना हम अपने से अलग पलने वाली दुनिया को अपना बनाए,क्यो ना हम उस कि साँसों में अपने गीत सजाये\\ क्यो अलग रहे हम, क्यो ना सब को अपना बनाए\\ इस दुनिया जहा मीत ना मिलते वह हम अपनी प्रीत लुटाये \\ चलो, इस दुनिया को अपना बनाए \\

Saturday, April 21, 2007

कुछ भूली बिसरी बातें |

कितनी ही बार ऐसा होता है के हम अपने काम मे उलझे होते है और अचानक कोई भुलीसी प्यारी धुन सुनायी पड़ती है, घर साफ करते हुए पुराने सामान मे कही पुराने ख़त मिल जाते है, कोई भुलासा गाना कभी राह चलते सुनाई पड़ता है ,कभी खुद कि ही लिखी कविता कही मिल जाती है और भूली यादो का सिलसिला सा जागता है ,कई अनकहे से ख़्वाब लौटते है, कई अश्क जो सुख गए थे फिर पलकें भिगोते है, कई जख्म जो वक़्त के साथ भर गए थे अचानक जागते है \ ये भूली धुन ,भुलासा गाना ,ये पुराने ख़त , ये मासूम अश्क याद दिलाते है एक खुबसुरत अतीत कि ,और होठो पर एक हलकी सी मुसकुराहट खिल जाती है \ कई बंद दरवाजे खुल जाते है, और हम अपनी ही तरफ फिर वापस लौटते है \ कितने ही सालो का फासला पल मे तय हो जाता है और कई लम्हों को फिर से जिंदगी मिल जाती है या शायद उन यादो के साथ हमारी जिंदगी लौटती है \ कितनी ही बाते जो हम ने कहने कि सोची थी ,कई ऐसे पल जिन्हे अपनी जिंदगी मे लाना चाहा था पर हक़ीकत मे ला ना सके ,वो फिर से याद आते है
और हम फिर उन्हें दोहोराते है,बस अपने आप के लिए \ ये यादे शायद हमारी ताकत बनके लौटती है ,चाहे वो हक़ीकत ना बन सकी हो \

ऐसे ही कुछ हालात बन जाते है और मन कह उठता है ----------

आवाजे लौटती है,मुसकुराहटे लौटती है,
अतीत और हमारे बीच कि जंजीरे टूटती है \
गुजरे कई साल ,कुछ पल बन जाते है,
अधूरे से कई ख्वाब फिर नजर आते है\
अनकही कई बातें खामोशी में गूंजती है,
मनचाहे कुछ अपनों को फिर नजरे धुन्धती है \\
कई गुजरे मंज़र फिर से खुद को दोहोराते है,
आज कि तनहाई में हम कल को भी तनहा पाते है \\

......................... शायद हुआ हो कभी ये आप के साथ,कुछ याद है ???

गौरी कमलाकर शेवतेकर

Friday, April 20, 2007

जिंदगी |

परवाना , परवाना नही कहलाता ,
जब तक शमा उसे जलाती नही \
जब तक दर्द का एहसास नही होता,
जिंदगी,जिंदगी कहलाती नही \\

---गौरी कमलाकर शेवतेकर.

Thursday, April 19, 2007

मेरी कविता

जीवन कि परिभाषा क्या है,
है जीने कि अभिलाषा क्या,
कभी ना रुकने वाले समय का,
हर पल है समझाता क्या? १

कौन से सुन रही मैं स्पंदन,
क्या जाग रहा अंतर्मन,
कौन से उत्तर धुंध रही मैं,
कीन प्रश्नों में घिरा है जीवन? २

आज अचानक,
महसूस हुआ जो,
क्या है ये अधूरापन? ३

वक़्त ने भी बदली है करवट,
विचारों कि बदली है गति,
अपने आप कि खोज कर रही,
भीड़ में मैं अकेलीसी ४

कोई ना जानता,कोई ना सुनता,
मेरे मन के स्पंदन को,
मैं ही अकेली देख रही हूँ,
मेरे जग-नवचेतन को !!!! ५

-----गौरी कमलाकर शेवतेकर.








कुछ रिश्ते |

जो रिश्तें दिलों को छू जाते है, उन रिश्तों को हाथों से छूने कि जरूरत नही \ होती बहुत खुबसुरती भर देते है कुछ लोग हमारी जिंदगी में-इतनी कि नजरे भी दुनिया को खुबसुरत महसूस करती है \इतनी कि पहले बदसूरत लगनेवाली दुनिया में हर तरफ खुबसुरती ,अच्छाई और रौशनी नजर आती है \ दिल को सुकून सा महसूस होता है \ क्या नाम होता है इन रिश्तों का,क्या नाम होता है उन लोगो का? होता भी है हर बार ? उनका नाम,वजूद या उस रिश्ते का नाम, ये जान ना जरूरी नही होता \उन रिश्तों को,उन लोगों को महसूस करना जरूरी है \ हर जिंदगी के लिए ऐसा एक रिश्ता,या कहिये ,रिश्ते जरूरी है \
----गौरी कमलाकर शेवतेकर.

Monday, April 2, 2007

Dream,Dream,Dream.........

Dream,Dream,Dream.Dreams transform into thoughts and thoughts into action.Real words,as we all know.
Our deeds are certainly the manifestation of our thoughts,our dreams.Many a times what we dream ,what we think and what we do to achieve what we believe in,is just the opposite of the norms,the popular beliefs and this is the time we invite a storm...storm of life,that tests our values,our beliefs, our determination.This is the time when we test ourselves,meet the reality and test our courage, our strength.
A time comes when it seems that a war is going and there is no way out.This is the time that determines our destiny.If we surrender against the harsh and the worst of life,we never get to reach the excellence,personal excellence and to accomplish what we believe in.To rise requires courage,not in thoughts but in deeds.Standing alone to become Outstanding requires strength.
We need to meet the storm face to face to stand firmly and live worthy,worthy of accomplishing our dreams because the roots of true achievement lie in the will to become the best you can become.Ceratainly,holds true for every one who dreams and thinks to convert them into reality.